घोड़ा और दूल्हा।
एक समय की बात है ।मैं किसी गांव से गुजर रहा था।उस गांव में बसों का स्टाप था।और गांव भी नेशनल हाईवे पर बसा हुआ था।मैं भी एक बस मैं यात्रा कर रहा था।बस रुकी और कुछ यात्रियों को उतरना था।तभी सामने से एक बरात आ रही थी।बस कुछ देर और रुकी रही।कयोंकि बराती नाचते गाते चल रहे थे।तब मैं ने बस के अनदर से झांक कर देखा तो बरात धूम धाम से नाच गाना करती हुई जा रही थी।दूल्हा एक घोड़े पर सवार था।बरातियों ने बहुत पी रखी थी।ऐसा पृतीत हो रहा था।कयोकि बहुत बेढ़ंगे तौर से नाच रहे थे।डीजे भी बहुत तेज स्वर मे बाज रहा था।उन बरातियों की वेशभूषा से जान पड़ रहा था।कि यह बराती गांव के रहने वाले हैं।किसी गांव से बरात आ रही हैं।गांव और शहर के लोगों की एक अलग पहचान। होती है।तब मैंने बस ही बैठे। बैठे ही बरात का मजा लिया।बहुत देर तक बस रुकी रही।कयोंकि रोड पर जाम लग गया था।बरात का पूरा चत्रित का नक्शा भी बना लिया।कि अब बरात का कया बिषय चुना जाये।तभी मैंने घोड़े को ध्यान से देखा।तो मुझे बिषय मिल गया था।कयोंकि बरातियों ने घोड़े को इतना सजा रखा था।कि दूल्हा उस घोड़े के सामने फुकरे दिख रहा था।दूल्हे के कपड़ें सँसते थे।और घोड़ा बहुत महँगे कपड़ें पहने था।और मालाये भी अपने गले में पहने था।घोड़े को नख से शिख तक सजाया गया था।दूल्हा उसके सामने कुछ नही दिख रहा था।लोग जयादा तर घोड़े को ध्यान से देख रहे थे।दूल्हे को कोई नहीं देख रहा था।घोड़ा किसी अमीर आदमी का लग रहा था।और दूल्हा किसी गरीब घराने का।यह उसकी वेश भूषा देख कर लग रहा था।घोड़े की देह बहुत सुंदर थी।ऐसा लग रहा था कि शादी घोड़े की हो रही हो।और दूल्हा बराती बना हो।