बीज निरर्थक रोप मत ! , कविता में संस्कार।
जिसने शौक को दफ़्नाकर अपने आप से समझौता किया है। वह इंसान इस
जो कण कण में हर क्षण मौजूद रहता है उसे कृष्ण कहते है,जो रमा
शिकायते बहुत हीं मुझे खुद से ,
इस जनम में तुम्हें भूल पाना मुमकिन नहीं होगा
गर्म दोपहर की ठंढी शाम हो तुम
कौन सा हुनर है जिससे मुख़ातिब नही हूं मैं,
दीप बनकर तुम सदा जलते रहो फिर नहीं होगा तिमिर का भान भी
गुजरे हुए लम्हात को का याद किजिए
Poetry Writing Challenge-3 Result
एक समय था जब शांतिप्रिय समुदाय के लोग घर से पशु, ट्यूवेल से
Now we have to introspect how expensive it was to change the