घोसला
घोसला बनते बनाते
मिट गई सारी जवानी
अब घोसला तो बन गया
पर क्या ?
फिर से लौटेगी जवानी ।। धृ।।
घोसला तो एक जरूरत थी
चलो ओ भी पूरी कियी
लेकिन उसे बनते बनाते
क्या जिंदगी हमने जियी ।।१।।
दूसरों को हसते हसते
खुदसेही रोते गए हम
घोसले में तो था उजाला
पर पता नहीं
भौतिकता के अंधियारो में
कैसे कैसे खोते गए हम ।।२।।
सोचते तो थे कभी हम
यह जिंदगी ऐसी जिए
खुदके लिए तो सभी जीते
कभी दूसरों कि दुआ भी मिले
सोच तो सोच रह गई
आकांक्षा पैसों में बह गई ।।३।।
जो पढ़ रहे इस कविताको
पढ़ते पढ़ते सोचे भी
जीवन होता मौल्यवान
घोसला और पैसों से भी
मिलकर अब सभी हम
एक ऐसी जिंदगी जिए
आसू किसिके आँख के
मिटाने का मौका मिले ।।४।।
शशांक कुलकर्णी द्वारा लिखित ‘नाद अंतरीचा’ इस मराठी – हिंदी मिश्र काव्यसंग्रह से यह कविता लियी गई है।