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3 Dec 2018 · 2 min read

घोष बाबू और मैं

पाषाण नहीं, हम भी हैं इंसान,
हैं हमारे इरादे भी बुलंद।
दिखा देंगे एक दिन दुनिया को,
हम भी छू सकते हैं आसमां।
मन दुःखी होता है, टूटता नहीं,
जब मुंह मोड़ लेते है हमसे अपने।
हमारी क्या खता, ईश्वर की इच्छा,
ईश्वर भी था जब मजबूर।
आधा-अधूरा शरीर दिया,
तब दे किसको दोष।
हमको छोड दो हमारे हाल पर,
न देखो हमको दयापूर्ण दृष्टि से।
दानवीर बनने की चाह हो अगर,
देना सहयोग, दया नहीं।
(दिव्यांगों को समर्पित व नमन)
घोष बाबू. सामान्य बच्चों से थोड़ा हटकर हैं. ये ऋषिकेश स्थित ज्योति स्कूल (विशेष बच्चों के लिए) में स्कूलिंग के लिए जाते है. स्कूल में अधिकांश समय गुस्से में रहने वाले घोष बाबू बाहर से जितने सख्त दिखते है, अंदर से उतने ही अच्छे दिल के है. सामान्य स्कूल्स के नखरे और ईश्वर की विशेष कृपा इन पर रही. श्री भरत मंदिर स्कूल सोसाइटी ने ऐसे विशेष बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के लिए ज्योति स्कूल की स्थापना की है. इस स्कूल में इन विशेष बच्चों के लिए जरूरत की चीजों का समुचित इंतजाम हर समय रहता है. मुझे भी एक लंबे समय तक इन बच्चों के बीच कम्प्यूटर टीचर के रूप में रहने का मौका मिला. यह बाहर से जैसे भी दिखते हो, पर दिल के बहुत ही साफ व अच्छे होते है. अब इन घोष बाबू की ही बात करूं, जब भी ये मेरे सामने आए तभी इनकी जबान पर सिर्फ एक ही बात होती है, ये मेरे सर है. सर मैं भी कम्पूटर सीखूंगा. लेकिन मेरी मजबूरी कहो या ईश्वर की लीला मैं चाह कर भी इनको कम्प्यूटर तो नहीं सीखा पाया. पर जितना यह कर सकते थे उतना मैंने इनको जरूर करवाया. इन्हीं बच्चों की दुआओं का असर है कि मैं आज आराम से जीवन व्यतीत करने की राह हूं और ये दुनिया की रंगीनियों से दूर निर्मल मन से सीखने का प्रयास करते रहते है.

Language: Hindi
Tag: लेख
587 Views
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