घोटालावला पाई (हास्य कविता)
घोटालावला पाई
(हास्य कविता)
ई पोटरी त हमरा सँ
उठने नहि उठि रहल अछि
कनेक अहूँ जोड़ लगा दिय भाई
ई छी घोटालावला पाई।
हम पूछलियन ई की छी
ओ हमरा कान में कहलनि
कोयला बेचलाहा सभटा रुपैया
हम एही पुत्री में रखने छि .
हमरा सात पुस्त लोकक गुजर
एही रुप्पैया स चली जायत
हम धरती में पैर नहीं रोपाब आई
इ छि घोटालावला पाई।
चुपेचाप थोड़ेक अहूँ लिय
मुदा केकरो सँ कहबई नहि भाई
सरकारी संपित हम केलियई राई-छाई
इ छि घोटालावला पाई।
कोयला भूखंडक बाँट-बखरा दुआरे
मंत्रिमंडल के सर्जरी भेल
लोक हो-हल्ला केलक मुदा
कोयला दलाली के नफ्फा हमरे ता भेल।
फेर मंत्री पद भेटैत की नहि?
ताहि दुआरे चुपेचाप पोटरी बनेलौहं
सभटा अपने नाम केने छि भाई
ई छी घोटालावला पाई।
देखावटी दुआरे सरकारी खजाना पर
बड़का-बड़का ताला लटकने छि
मुदा राति होएते देरी हमीह
भेष बदली खजाना लूटि लैत छी।
मंत्रीजी के कहल के नहि मानत?
सरकारी मामला में कियक किछु बाजत?
चुपेचाप सभटा काज होयत छैक औ भाई
ई छी घोटालावला पाई।
कवि – किशन कारीगर