घुमा फ़िरा कर नहीं सीधे मिश्रे में बात करता हैं हर उर्दू जुबा वाला बड़े सलिके में बात करता हैं
घुमा फ़िरा कर नहीं सीधे मिश्रे में बात करता हैं
हर उर्दू जुबा वाला बड़े सलिके में बात करता है
ज़िन्दगी जिने का सलिका ही नहीं आता उसे
वो हर किसी से तिखे लहज़े में बात करता हैं
कौन सी दुनिया पता नहीं कहाँ चले आए हम
बेटा हिस्से की बाप के ज़नाज़े में बात करता हैं
गीता पर हाथ रख कर झूठ बोलता सकता हैं
हक़िक़ती की शराबी मयख़ाने में बात करता हैं
बतिल को पता नहीं शायद दिवारो के कान हैं
तभी मेरे कत्ल की बन्द कमरे में बात करता हैं
मौत का खौफ़ या अपनी जान की परवाह नहीं
हमे मिटा देने की हमारे इलाके में बात करता हैं