घिरे घन
घिरे घन
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उमड़ घुमड़ घन घिरे गगन में, जैसे मन सरसाते हैं ।
यौवन के बादल ऐसे ही , हर जीवन में छाते हैं ।।
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झुलसी हुई धरा के तन पर ,जम कर झूम बरसते हैं ,
कभी फुहारों से रिमझिम झर , ताप हृदय का हरते हैं ,
अँकुराते हैं कोमल किसलय , नयना झुकें लजाते हैं ।
यौवन के बादल ऐसे ही हर जीवन में छाते हैं ।।१
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झूलों पर बैठा मन झूले , झोटा लगें सुहाने से ,
घूँघट में चंदा शरमाये , नजरों के मिल जाने से ,
चार दिनों की खिले चाँदनी , तारे देख सिहाते हैं ।
यौवन के बादल ऐसे ही हर जीवन में छाते हैं ।।२
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घायल करता है अनंग मन ,रति की प्यास जगाता है ,
साँसों से साँसें मिलतीं ,मन में मन डूब समाता है ,
हर जीवन की यही कहानी , सुनते सभी सुनाते हैं ।
यौवन के बादल ऐसे ही , हर जीवन में छाते हैं ।।
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-महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा !
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