घायल मेरा प्यार….!
तुम्हें तुम्हारी जीत मुबारक, मुझे मुबारक हार
छल की छुरियों ने कर डाला, घायल मेरा प्यार
अपना जीवन बीत रहा था
तनहा यूँ ही जीते–जीते
बेमानी बातों का मतलब
अब समझा मैं रीते–रीते
तुमको दूजी प्रीत मुबारक, मुझे मुबारक वार
आरोपों की जंजीरों में, बँधा जो मेरा प्यार
खोया सपना देख रहा था
खुली पलक को कुछ मैं मूँदें
प्रीत का रस मन सीला कर गया
ओस की जैसे ठंडी बूँदें
तुमको जीवन फूल मुबारक, मुझे मृत्यु का हार
छल–प्रपंच की मालाओं में, बिंधा जो मेरा प्यार
जो तुम थीं घर–बार सरीखी
जीवन में हमवार सरीखी
तुम जो थीं रतनार सरीखी
सरिता के जलधार सरीखी
प्रेम का सागर तुम्हें मुबारक, मुझे मुबारक खार
बीच–भँवर में पतवारों से, चोटिल मेरा प्यार
प्रीत की सूई सी जो तुम थीं
तुम ही थीं विश्वास का धागा
प्रेम को अपने हिय बुन डाला
जोगी जो मैं एक अभागा
वफ़ा की चादर तुम्हें मुबारक, मुझे ज़फा का ज़ार
वादों की संगीनों से जो, छलनी मेरा प्यार
प्रेम के कारागार का कैदी
बंद पड़ा पिंजरे का पंक्षी
नशे को ढूँढ़े बादल अन्छी
डोर को तरसे पतंग के कंछी
कसक रहा मन मचल रहा मन, उलझे बारंबार
इस आशा में अभी तलक हूं, कभी खुलेगा द्वार
–कुँवर सर्वेंद्र विक्रम सिंह
*स्वरचित रचना
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