घायल इन्सान
मेरे अंदर भी बसता था कभी एक इन्सान.
लेकिन अब मैने पहुचा दिया है उसे स्मशान.
अपनो ने की है मेरी इतनी अब तक अवहेलना.
के दानव बनकर चाहता हु अब मै जीना.
आस थी अब तक के होगी नही वहा देर.
पर शायद वहापर भी होती है अंधेर ही अंधेर.
दुनिया मे आदर्श का कोई होता नही है मोल.
इसी बात का गहराई तक चुभ रहा है शुल.
नैतिकता का भी दुनिया मे होता है परिहास.
इसलिये अब रहा नही मुझको नैतिकता का ध्यास.
इसलिये कर दिया है मैने आदर्श नैतिकता को दफन.
सत्य सदाचार को भी ओढा दिया है कफन.