घायल आत्मसम्मान
ग्लानि – कुंठाओं से भरे
सैकेंड , मिनट , घंटे , दिन ,
महीने साल दर साल
रोज मुझसे पूछते
यही सवाल
क्या यही था तुम्हारा
मान – अभिमान ?
लगातार पैरों के नीचे कुचलता
ग्लानि और कुंठाओं को
अपने उपर जकड़ता
कछुये की पीठ की तरह
कठोर होता जाता
और मान – अभिमान
कछुये के मुँह की तरह
अंदर छिपता जाता
और लगातार
बिना जीभ निकाले
मुझे चिढ़ाता जाता ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 12/01/08 )