घाम
मुक्तक छत्तीसगढ़ी – घाम
★★★★★★★★★★
कभु गर्रा धुका चलथे,
कभु बड़ घाम आथे जी।
बढ़े गरमी त मन म भाव,
त्राही माम आथे जी।
जरोथे तन सुरुज नवत्तप्पन म,
तै बोर दे बासी।
जुड़बासी के पसिया ह,
तभे बड़ काम आथे जी।
★★★★★★★★★
रचनाकार- डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”
पीपरभावना,बलौदाबाजार(छ.ग.)
मो. 8120587822