घट घट में हैं राम
घट घट में हैं राम
1
उर है हरि के हाथ में , उर में हैं सुरभूप
जैसे कर में ले मुकर , हम देखें निज रूप
हम देखें निज रूर , आप भीतर भी वैसा
तो सोचें हरि हेतु , भला यह अचरज कैसा
कहता जिसे अनादि , एक सुर में हर सुर है
उसी नाथ का धाम , धन्य मेरा यह उर है
2
अपने हरि हैं पौध भी , हैं किसान भी साथ
जल हैं , सींचनहार हैं , फल है वे ही नाथ
फल हैं वे ही नाथ , बेचने वे ही जाते
लीला उनकी धन्य , मोल लेने भी आते
खुद माया में आप , देखते झूठे सपने
बनकर ज्ञानी संत , भेद बदलते अपने