घसीट के घुटनों पे लाएँगे !
अकाल पड़ा है,
खेतों में नहीं दिलों में,खाये -अघाये लोगों के दिलों में,
हम भूख कि बात करते हैं, वो सुख अपना गिनवाते हैं,
हम रोटी -रोटी करते हैं, वो ढाढ़स हमको बंधवाते हैं ।
खाये अघाए लोग तो बस मस्ती कि बातें करते हैं।
जो बेच के बचपन जीते हैं बस वही भूख -भूख चिल्लाते हैं ।
सडकों और बाजारों में रोटी खोजने वो जाते हैं,
कचड़े के ढेरों में देश का दर्पण देखने वो जाते हैं।
रोटी के बदले उच्छिष्ट (जूठा अन्न) खोजने वो जाते हैं,
भूखे बच्चों को देखो, जीवन ढूढ़ने वहां वो जाते हैं ।
अकाल पड़ा है, खाये – अघाये दिलों में
जीने और खाने के हर आयाम पे Gst वो लगाते हैं
हर सांस पे हमारे जैसे पहरे वो लगाते हैं,
पर, हम भी बाज कहाँ आने बाले हैं
अघाये लोगों के हलक में हाँथ डालेंगे
अपनी खुरदुरी, घीसी हुई हथेलियों से
अपने आप को दाँव पे लगाते हुए,
अघाये हुए लोगों को घसीटते हुए घुटनों पे लाएँगे
हम भूखे लोग भूख का असली मतलब सिखलायेंगे !
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8 /12 /2018
मुग्द्धा सिद्धार्थ