घर_आँसू_भूख_खून_मौत– “कोरोना_से_घातक_है_ग़रीबी”
पापा हम सब कब पहुंचेंगे घर-4 साल की गुड़िया ने अपने पापा के कंधे पर बैठे-बैठे पूछा।
बस बेटा कल सुबह ही पहुँच जाएंगे,जबकि लाचार पापा ख़ुद भी नही जानते थे कि कब आएगा घर।
अम्मा-ओ-अम्मा सुबह के बाद से रोटी नहीं मिली बहुत भूख लगी है,अब चला भी नही जा रहा-गुड़िया के 7 साल बड़े भाई ने अपनी अम्मा से एक रोटी के लिए आस लागई।
अम्मा कहती हैं ले बेटा बोतलिया में पानी है थोड़ा पी ले आगे कोई भला मानुस जरूर कुछ न कुछ देगा।
गुड़िया का भाई पानी पीता है,और पानी खत्म हो जाता है,और गुड़िया का पापा पसीने से लतपत प्यासे होते हुए भी कुछ नही कह पाता।
डगर लम्बा था और गुड़िया के परिवार का हौसला उससे भी लम्बा। वो चल रहे थे अपने घर के लिए, वो चल रहे थे अपने बच्चों के लिए।
अरे अम्मा वो देखो कुछ मिल रहा वहाँ लोग बांट रहे हैं कुछ,अम्मा भागती हुई जाती है चलो कुछ तो भूख मिटेगी,पर यह क्या वहाँ हुजूम था ,गुड़िया जैसे कई परिवार थे जिनके सबकी आंखों में बस वो एक पैकेट दिख रहा था।
खैर अम्मा किसी तरह एक पैकेट ले आयी थी,खाने वाले चार और पैकेट में थोड़े से चावल।
भूख को माँ कैसे मारती है,और पिता कैसे पराजित करता है यह साफ़ देखने को मिल रहा था।
गुड़िया और उसके भाई ने चावल खाये और माँ बाप ने उसकी झूठन।
पर मज़ाल भूख ने उनके हौसले को डिगाया हो,वो अब भी चल रहे थे।
रात हो चुकी थी,पैरों में पड़े छाले रह रह के खून से सिसक रहे थे।
चलो यहीं किनारे आराम कर लेते हैं पापा ने कहा,अम्मा ने भी हामी भरी।
चारों लेट गये और लेटते ही सो गए।
गुड़िया का भाई सोते सोते उठा शायद उसने अम्मा से कहा अम्मा-अम्मा सूसू आयी है ,अम्मा ने कहा जा रोड किनारे कर ले और जल्दी से आ जा।
गुड़िया का भाई सुसु कर के वापस आ ही रहा था कि उसके सामने से पो…ओ… ओ..न हॉर्न मारता हुआ ट्रक उसके परिवार के ऊपर से जा चुका था,टायर की रगड़ की बदबू उसके नाक में घुस रही थी, पापा अम्मा और गुड़िया को पहचानना अब मुश्किल हो रहा था।
पापा ओ पापा उठो न,अम्मा ओ अम्मा उठो न, गुड़िया कुछ बोल नही रही देखो न कोई कुछ बोल नहीं रहा।
देखते ही देखते उसके चारों तरफ़ भीड़ थी और कुछ चमक रहा था शायद कैमरे रहे होंगे।
और ये क्या गुड़िया के भाई के परिवार को कोई सफ़ेद गाड़ी में लाद रहा था।
कुछ वर्दी वाले भी आये थे।
अगले दिन मैंने अखबार में गुड़िया के परिवार के बारे में पढ़ा सब शांत सा था,जो शोर रात में था ,वो अब सब शांत था जैसे कुछ हुआ ही न हो ,जैसे किसी को कुछ पता ही न हो।
गुड़िया का भाई घर पहुँचा की नही मुझे नहीं पता वो कहाँ है ये भी मुझे नहीं पता।
बस मुझे इतना पता है न जाने कितने गुड़िया के परिवार जैसे लोग मर रहे हैं और सब सह रहे हैं।
कोई ट्रेन से कट के,तो कोई ट्रक से कुचल के,कोई चलते चलते भूख से तो कोई अपने को खोने से।
आंखों में आंसू की दो बूंद लिए मै साधारण सा व्यक्ति गुड़िया के परिवार के लिए कुछ न कर पाया।
माफ़ करना गुड़िया!
तुम सबको कोरोना नहीं तुम सबको ग़रीबी मार रही है।
हे!ईश्वर रक्षा करें सबकी?
#राधेय।