घर :,,,,,,,,
घर :,,,,,,,,
विलम्ब से ही सही
तुम लौट तो आए
अपने घर
ठहरो जरा
पहले मैं
तुम्हारी प्रतिक्षा में बन्द
घर के वातायन पटों को खोल दूँ
ताकि तुम्हें
बाहर जैसी खुली हवा की
अनुभूति हो सके
घर में भी
ठहरो जरा
पहले मैं घर की दीवारों से
तनावों और उलझनों के जाले उतार दूँ
ताकि तुम्हें
बाहर जैसा तनाव रहित
उन्मुक्त वातावरण मिल सके
घर के अंदर भी
जरा ठहरो
पहले मुझे पलंग पर
अपने जिस्म की चादर बिछा लेने दो
ताकि
शाम ढले
तुम लौट सको
अपने घर
सुशील सरना