घर से बेदखल
अपने ही घर से जिन्हें ,
कर दिया जाए जब बेदखल ।
उनकी जिंदगी में आ जाता है ,
अचानक ही खलल ।
माना की इस जहां में ,
कुछ भी अपना नही ,
मगर यूं किसी को जीतेजी ,
बेसहारा करना ठीक नहीं ।
अपनी जान बचाएं या
अपने घर को बचाएं ?
दुश्मन खड़ा हो खंजर लेकर ,
तो हम पहले खुद को ही बचाएं।
सारा कारोबार,सारी दौलत ,
सारा समान छोड़ कर भाग आए ।
जैसे हाल में थे,जिन कपड़ों में थे,
उसी में सर पर पैर रखकर भाग आए ।
हमारा घर क्या छूटा ,
हमारी जीने की आजादी भी छीनी ,
उन शैतानों ने हमसे खुशी की ,
हर वजह भी छीनी ।
अब रहना होगा पराए देश में,
शरणार्थी बनकर ।
मन को मारकर ,किसी तरह ,
हालातों से समझौता कर।
चाहे मिले किसी के घर में हजार सुख,
मगर अपना घर तो अपना ही होता है।
किसी के हुजूर में मोहताज होकर रहना,
से अच्छा मौत को गले लगाना होता है।
बा मुश्किल मेहनत कर हमने ,
आज के नए जमाने से कदम मिलाया था,।
औरत ने समाज में बराबरी का हक,
और मर्दों के समान ऊंचा दर्जा पाया था ।
अब इन तालिबानियों ने हमें १00साल
पीछे धकेल दिया।
अपनी तंगदिली और घटिया कानूनों ,
को हम पर थोप दिया ।
अब वो हैवान चलाएंगे अपना राज ,
जो हमें कबूल नहीं था ।
क्या कहें ! दिल पर पत्थर रखकर चले आए,
हालांकि मन बिल्कुल न था ।
या खुदा !! हमारी पुकार सुन ले ,
लौटा दे हमें हमारा आशियाना ,
इन जालिमों को हमारे वतन से ,
सदा के लिए खदेड़ दे ।
हम उम्र भर करेंगे तेरा शुकराना ।