घर से दूर रहने वाले विद्यार्थी को समर्पित
घर जाता हूं तो मेरा ही बैग मुझे चिढ़ाता है ।
मेहमान हूं यह पल पल मुझे बताता है ।
मां कहती है, सामान बैग में डालो,
हर बार तुम्हारा कुछ ना कुछ छूट जाता है ।
घर पहुंचने से पहले ही लौटने का टिकट,
समय परिंदे सा उड़ता जाता है ।
उंगलियों पर ले जाता हूं गिनती के दिन,
समय बर्फ की तरह फिसलता जाता है ।
बेटा कब आएगा वापस हर बार मां कह जाती हैं ।
रोती हुई आंखों को यह बातें धुंधला जाती है ।
घर आते समय बजनी हुआ बैग, सीट के नीचे पड़ा खुद उदास हो जाता है।
तू एक मेहमान है यह पल पल मुझे बताता है ।
हर रोज मुझे मेरा घर वाकई बहुत याद आता है ।