घर संसार
घर होता है मंदिर प्यार का
नीड़ है सपनों के संसार का
सजा फूलों की फुलवारी सा
महके फूल फूल क्यारी का
प्रेम बंधन मे सबको बांधता
रिश्तों को सूत्र में हैं जोड़ता
प्रेम को सभी में है परोसता
कोई किसी को ना कोसता
स्वर्ग से सुंदर होता है वो घर
जहाँ रहें सभी मिलजुल कर
सबसे उत्तम जीने का तरीका
घर रहने का सब हो सलीका
सब कुछ हो जाता है कबूल
सभी अपनी गलती माने भूल
छोटा -बड़ा जो भी हो नाता
घर में सब को होता हो भाता
बहन हो प्यारी सुंदर हो भ्राता
ममता का सागर होती माता
पिता की पगड़ी घर की लाज
बच्चों के बिन नहीं बजे साज
दादा दादी होते घर के प्रहरी
बरगद की छाँव जैसै हो गहरी
संस्कृति संस्कार के कर्णधारी
घर में रहते छोटे बड़े प्रभारी
अपने बड़ों का है मान सम्मान
जहाँ ना होता दुत्कार अपमान
सत्कारीय होते हों घरेलू रिश्ते
प्यार मोहब्बत से ही हों निभते
अतिथि का सदैव होता सत्कार
नहीं होता किसी का तिरस्कार
मिल कर खुशी मनाते हों सारे
सुख दुख मे साझीदार होते सारे
अनुपम मनोरम होता वो दृश्य
घर में दुख कलेश सदैव अदृश्य
सचमुच घर होता है स्वर्ग मंदिर
प्रेम मोहब्बत पनपती हो अंदर
सुखविंद्र सिंह मनसीरत