घर रिश्तों से महका होता
घर रिश्तों से महका होता
तो खुशियों का डेरा होता
कम हो जाता बोझ जरा सा
दर्द किसी से बाँटा होता
उम्र बड़ी होती रिश्तों की
दिल से दिल भी जोड़ा होता
मिल जाती मंज़िल यदि तुमने
हाथ हमारा थामा होता
जीना भी हो जाता दूभर
सपनों पर गर पहरा होता
बात नहीं बढ़ जाती इतनी
अगर ‘अर्चना’ सोचा होता
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5-11-2019
डॉ अर्चना गुप्ता