घर मेरा छीन कर मुझे बेघर तो कर दिया
ग़ज़ल – –
घर मेरा छीन कर मुझे बेघर तो कर दिया।
अब शुक्रिया तेरा है कलंदर तो कर दिया।।
तू हाथ भी न थाम सका डूब जब रहा।
एहसान तेरा मुझको शनावर तो कर दिया।।
तकलीफ़ तो हुई थी तेरी आग़ से मगर।
तूने मुझे जला के मुनव्वर तो कर दिया।।
तन्हाइयाँ रही तो तसब्बुर में खो गया ।
इन रतजगों ने मुझको भी शायर तो कर दिया ।।
जीती मुसीबतों की हर इक जंग़ तू “अनीश” ।
इन मुश्किलों ने तुझको सिकंदर तो कर दिया।।
——अनीश शाह