* घर में खाना घर के भीतर,रहना अच्छा लगता है 【हिंदी गजल/ गीत
* घर में खाना घर के भीतर रहना अच्छा लगता है 【हिंदी गजल/ गीतिका】*
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(1)
घर में खाना घर के भीतर, रहना अच्छा लगता है
तुमसे थोड़ी दिल की बातें, कहना अच्छा लगता है
(2)
जब से उम्र साठ की पाई, समझ जरा-सी है आई
अब बुत का अपने ही ऊँचा, ढहना अच्छा लगता है
(3)
मेरी गलती पर तुम घर को, सिर पर अगर उठा लो तो
साथ तुम्हारे आँचल पकड़े, बहना अच्छा लगता है
(4)
जिन कामों में तुम्हें खुशी, मिलती है अब वह सब अच्छे
कम या ज्यादा सनक तुम्हारी, सहना अच्छा लगता है
(5)
मुझसे अक्सर ही तुम पूछा, करती हो क्या पहनूँ जी !
सच बतलाऊँ तो हर कपड़ा, पहना अच्छा लगता है
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451