घर बिखर जाता है,
घर बिखर जाता है,
जब करने लगते है, दरकिनार छोटी छोटी खुशियों को,
जब करने लगते है अनदेखा अपनों की भावनाओं को,
जब करने लगते है मृगतृष्णाओं का पीछा,
जब करने लगते है इच्छाओं का दमन,
जब करने लगते है चरित्रता का हनन ,
जब फैलने लगती है एक चुप्पी रिश्तों के दरमियाँ,
जब पसरने लगता है लंबा सन्नाटा दिलों के बीच,
घर बिखर ही जाता है जब बढ़ जाता है महत्व भौतिकता का, स्वंय की मौलिकता का , जब छा जाता है नशा अभिमान का, खुद की पहचान का, तो बिखर जाता है अक्सर घर बिखर ही जाता है