घर द्वार बुलाए है
अब तो लौट के आना होगा,
तुझको घर द्वार बुलाए है।
धान कटे, सरसों फूले,
गेहूँ भी उग आए हैं।
बारिश छूटी, सावन बीता,
सर्दी के दिन आए हैं।
अब तो…..
धीरे-धीरे आसमान का
कुहरा निगला धरती ने।
धूप सुनहरी बदल गई है
हँसते- बतीयाते फूलों में।
बाग बगीचे हरे-भरे सब
चिड़ियों को चहकाए है।
अब तो……..
धरती को चूल्हे पर रख कर
भून दिया है सूरज ने।
धरती को ही शून्य किया है
धरती के रखवालों ने।
दिन गरमी के धरती-धरती
अब आतंक मचाए है।
अब तो…..।