घर घर में विभीषण
भाई विभीषण हो गए, भाभी भी शैतान ।
रिश्तो को अब ना रही, रिश्तो की पहचान ।।
रिश्तो की पहचान, नहीं है कोई सनीफी।
सबके अंदर घुस गई, है अब राजनीति।।
कह सागर कविराय, लगे अब डर रिश्तो से।
डर लगता हर बार, यहां पर अब अपना से।।
====27/04/2020
डॉ नरेश कुमार सागर