*घर-घर में झगड़े हुए, घर-घर होते क्लेश 【कुंडलिया】*
घर-घर में झगड़े हुए, घर-घर होते क्लेश 【कुंडलिया】
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घर-घर में झगड़े हुए ,घर-घर होते क्लेश
घर-घर धन के लोभ से ,दूषित है परिवेश
दूषित है परिवेश ,संपदा सबको प्यारी
छोड़ न पाए स्वर्ण ,छोड़ दी रिश्तेदारी
कहते रवि कविराय ,प्रीति सबकी नश्वर में
प्रभु की किसको चाह ,चाह धन की घर-घर में
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रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 999 761 5451