घर घर दीप जले
मनहरण – घनाक्षरी
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**घर-घर दीप जले*
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घर – घर दीप जले,
खुशियों के पल मिले,
सभी के मन खिले,
आई आज दीवाली है।
गुलाब सा दिल खिला,
रोम – रोम जाग उठा,
कोई जो गले मिला,
यार नही वो साली है।
चोरी-चोरी ऑंख मिली,
हृदय की कली खिली,
दिल्ली की जड़ हिली,
स्वप्न देखा जो जाली है।
चोरी आब है पकड़ी,
भय ने जान जकड़ी,
पुलिस भी है आई,
सामने घरवाली है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)
रोम रोम