घर के अंदर
घर के अंदर एक छछुंदर
दौड़ लगाती है ।
बाहर से मुँह में दाबे, जाने
क्या लाती है ।।
पूँछ पकड़कर बच्चे उसके
रेल बनाते हैं ।
पीछे पीछे माँ के लगते
धूम मचाते हैं ।।
देख दूसरों को झटपट से
यूँ छुप जाते हैं ।
जैंसे कोई मौनी बाबा
ध्यान लगाते हैं ।।
बिल्ली मौसी के आते ही
दुबके डर के मारे ।
छछुंदर भी छिप जाती है
ओढ़ के कपड़े कारे ।।
बिल्ली गई शुरू हो जाती
धमा चौकड़ी फिर से ।
कई जतन करने पर भी ये
नहीं निकलते घर से ।।