घर की इज्जत -एक दहलीज
मर्यादा में बंधी रहती है
दहलीज
एक चौखट में बंधी है
दहलीज
दहलीज के अंदर है
घर की इज्जत
बाहर गयी तो
सरे आम बदनाम है
आबरू
आज हर मुकाम पर
खड़ी है नारी
पड़ रही है वह
हर सफलता पर भारी
मत बांधो उसे
दहलीज की रेखा में
आने दो बाहर बेटी बहू को
दहलीज के
बेटों की तरह
काम करने दो उन्हें
घर बाहर के
दहलीज तो है बस
आँखो की मर्यादा तक
बढो और भेदो लक्ष्य
उन्नति के उच्च सोपान तक
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव
भोपाल