घर का सूना चूल्हा
जब जेब से खाली हो, पिया पीने की लत में ।
घर में कुछ यार बुलाये, पैसे मांगे सौगंध में ।।
कहां से दू मदिरा को, घर का चूल्हा सूना है।
भूख से बच्चे बिलख रहे है, क्यों मदिरा को पीना है।।
ना सुनता अरदास मेरी वो, हुल्लड़बाजी रोज करे ।
ले जाता कोई बर्तन भांडा, कभी कपड़े जेवर ले भगे ।।
औने पौने बेच टंडीरा ,मयखाने में जा जमे।
खुद पिए यारो को पिलाये, दारू का जब तक रंग चढ़े।।
गिरता पिटता देर रात में , घर आकर तूफान रचे।
खाना बिस्तर पर लड़ लड़ मांगे, बच्चो से छिप पता फरे।।
रोज शराबी मार सहूं मै, फूटी किस्मत को रोती।
कर मजदूरी पोषण करती, बिगड़े कर्मो को धोती।।
हे राम! लिखा ऐसा क्यों जीवन, अपना अब वापिस ले लो।
कभी संग शराबी का ना देना, आज वचन मुझको दे दो ।।
मिट जाये ये सभी शराबी, ऐसा कोई इंकलाब करो ।
जल जाये ये सूने चूल्हे, ऐसी म फरयाद करू ।।