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15 Sep 2019 · 1 min read

घरौंदा

नीड़ से बिछड़ी
बिखर गया सब,
तिनका तिनका गिला!
बिखर गया सपनों का मंजर
सूत सूत अलबेला ।

बुन चुन हर धागे में भरकर
कातती गोला गोला
गाती भर आंचल अपने मैं
सुंदर गीत सलोना।

पंख फैलाए उड़ चलूँ अब
अंत – अनंत सपनीला
मिलूँ वहां अपने प्रियतम से
अंबर नीला – पीला।

अनजाना अनभिज्ञ सा रहबर
डगर डगर पथरीला
अंतहीन अंतस का हर पल
बेबस बेकल जीना।

सेमल के फूलों सी दहकी
स्वप्न संजोए लाखों
देह – देह से, प्राण- रूप से
बिखरी हर अभिलाषा।

अनिल कुमार श्रीवास्तव
15/9/19

Language: Hindi
188 Views
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