अहम जब बढ़ने लगता🙏🙏
अहम जब बढ़ने लगता🙏🙏
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अहम घमंड जब बढ़ता मन
इंसानियत भूल जाता जग में
अकर्म मन ही मन मुस्काता है
लोभ मोह भंवर चक्रवात फँसा
धर्म-कर्म भूल भावहीन बनाता
तर्क वितर्क वाद विवाद गुण
अवगुण दोष निर्दोष साबित
मीडिया पग पग रंग बदलता
होड़ होड़ में मिडियाकर्मी नई
साक्ष्य मुद्दे सामने ले लाता है
अहम अहमियत भूल बैचैन
चिन्तामनी रेखा ललाट आता
वक्त बार-बार समझाता पर
समझ नहीं आता जन को
काल गाल विशाल बना बैठता
समय की चाल समझ नहीं पाता
मर्यादा विहीन को निज मर्यादा
परिस्थिति हालात विविध रूप
में समझाने आता रहता पर
समझ गए तो हुए मालो माल
नहीं समझे तो कालों की गाल
घमण्ड हीन कर्मवीर पथवीर
श्रमवीर भाववीर जन मानस में
अमिट छाप छोड़ जाता जग में
लोभ मोह ईष्या तृष्णा अहम
वहमअहमियत धूमिल कर देता
छोड़ अहंकार त्याग अहम अपना
सम्मान मान प्रतिष्ठा सत्कार प्रेम
प्यार करुणा दया यही है गीतासार ।
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तारकेश्वर प्रसाद तरूण