घन घोर घटायें घिर रही –आर के रस्तोगी
घन घोर घटाये घिर रही ,
रुक रुक हो रही बरसात |
साजन है मेरे परदेश में ,
कैसे करू, उनसे बात ?
दम दम बिजली दमक रही ,
अब दिन भी हो गया रात |
दिन तो कैसे तैसे कट गया ,
कैसे कटेगी ये अँधेरी रात ?
ठंडी ठंडी हवा है चल रही,
ठण्ड से ठिठुर गया गात |
साजन तो मेरे पास नहीं ,
कैसे गर्म होगा ये गात ?
खनक खनक के कह रही ,
चूड़ियाँ अपने दिल की बात |
साजन तो बहुत दूर है ,
कैसे सुनेगे चूड़ियों की बात ?
सरक सरक इशारे कर रहा,
सीने पर पड़ा मेरा दुपट्टा |
अब तो इशारा समझ जाओ
कैसे दिल होगा मेरा पठ्ठा ?
आर के रस्तोगी
गुरुग्राम मो 9971006425