घने सन्नाटे में
घने सन्नाटे में
घने सन्नाटे में एक मुद्दा उछलना चाहिये ।
मुतमइन सैलाव में हलचल मचलना चाहिये ।।
खुदकुशी और भूख के सब आंकड़ों को देखकर ।
बजीरे आजम को मन की बात कहना चाहिये ||
वजन जूतों का मुसल सल बड़ रहा है रात दिन ।
सब्र की हद हो चुकी चीखें निकलना चाहिये ।।
चाकुओं को सियासत के सामने कर दीजिये ।
चाकुओं से खुदकुशी का चलन रूकना चाहिये ।।
अंकुशों की धार को कुछ तेज भी करते रहो ।
बोखलाये हाथियों की मद उतरना चाहिये ।।
कद बहुत छोटा मगर ख्वाहिश हद तो देखिये ।
उनकी परछाई से पूरी बज्म ढ़कना चाहिये ।।