घना शोर था
नियत में खोट नहीं था,
पर,बातों में बोझ था।
रिश्तों में छल भी नहीं था,
सहमति में विरोध था।
कुछ प्रश्न का हल नहीं था,
पर,लफ़्ज़ों में गर्व बोल रहा था।
बिन बात की नफरत में बल नहीं था,
अहसास का अभी भी मोल था।
दोस्ती में अब कुछ हलचल नहीं था,
उर में आज भी नेह का घोल था।
अनुराग-आंनद का मेलजोल नहीं था,
शिकवे शिकायत का बोला-बोल था।
उस राह से गुजरने का टैक्स टोल नही था,
आते की कई बिछड़ी राह उदासी का रोल था।
वाहन,चुप्पी में भी घना शोर था।
– सीमा गुप्ता अलवर राजस्थान