घनाक्षरी
***मनोरमा जैन पाखी
मनहरण घनाक्षरी छंद
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प्रीत की है क्यूँ चुभन ,
भावना कर दमन ,
सुरभित है चमन,
मन बहकाइये ।।
मुस्कान लगती प्यारी ,
जैसे कोई फुलवारी ,
मन से मैं जाऊँ बारी ,
यूँ हीं न गँवाइये ।।
नजर मत चुराओ,
बात को न यूँ छुपाओ ,
अब पिया मान जाओ ,
. अश्रु न बहाइये ।।
प्रेम माह फरवरी ,
लगी नेह की है झरी ,
बसंत में सूखे परी ,
फाग तो मनाइये।।
मनोरमा जैन पाखी ,
बनी है तुम्हारी साथी ,
मधु प्रेम रस चाखी ,
जी तो न जलाइये ।।
मनोरमा जैन पाखी
भिंड .म.प्र.