घनाक्षरी
#वर्तमान_परिदृश्य
ज्येष्ठ संग लघु भाई, बांट दिए बाप माई।
गोद में खुदी है खाई, कैसी घड़ी आई है।।
बहना विलाप करे, कटे बृक्ष हरे- भरे।
जड़ इस टूट की तो, दोनों की ही ब्याही है।।
नवबधू घर आई, विपदा भी संग लाई।
बंट गए भाई-भाई, सुख की विदाई है।।
घोर कलयुग आया, वेदना भी संग लाया।
प्रेम-नेह नष्ट सब, वेला दुखदाई है।।
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’