घनाक्षरी “सूर्यदेव अब जरा
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तापमान बढ रहा, कीर्ति मान गढ रहा,
सूर्य देव अब जरा,आप रुक जाइए।
घाम से बेहाल हुए,प्यास से निढाल हुए,
जन सभी हुए दुखी,और न सताइए।
बह रहा स्वेद अब,मान जा ओ मेरे रब,
जन सभी पुकारते,आप मान जाइए।
आर्तनाद कर रहे,जीव भी झुलस रहे,
सूर्य देव आप अब,ताप को घटाइए।
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अटल मुरादाबादी