घनाक्षरी श्रंगारिक
कुन्दन सी कोमल समान काया कामिनी की,
कंचन सा रूप देख, प्रेम जगने लगा।
चंचल चपल नैन, कंठ कोकिला से बैन
अधर अमिय देख, प्रेम बढ़ने लगा।
केश कुंज देख मुख, मंडल कपोल पर
दिल में हमारे प्रेमभाव सजने लगा।
इठलाती बलखाती बाला जो निकट आयी
मन में अनंग सा मृदंग बजने लगा।
अभिनव मिश्र अदम्य