घनाक्षरी छंद
वो बुतकशी में रोता, होंठों पे बेवसीहैं ,
खुशियों का शामियाना,दौर मुफलिसी हैं ।
दूर जाती हैं मंजिल ,राहें कठिन बड़ी है ,
तमाशा दिखाएं बंदा , फिर भी बंदगी हैं ।
बेजार रोई वो आंखें, दिखें कोई साथी हैं,
नासाज़ आदमी को ,देदी दवा मीठी है ।
फसाने को हकीकत, बनाने का हुनर है ,
लहरों के आगे नैया , डूबेगी जब कभी है ।
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स्वरचित ,- शेख जाफर खान