घनाक्षरी छंद ~ फटेहाल बच्चे
घनाक्षरी छंद ~ फटेहाल बच्चे
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स्वयं पे ही सभी रहते हैं वशीभूत अब,
कोई भी किसी की नहीं सुनता जहान में।
भूख और प्यास लिये मरते मनुष्य पर,
लोग तो यकीन अब रखते हैं श्वान में।
श्वान को खिलाया नहलाया व घुमाया जाता,
कभी सड़कों पे कभी कार में बागान में।
किन्तु कई लाख बच्चे हो के फटेहाल हाय,
जूठन गिलास धोते चाय की दुकान में।
– आकाश महेशपुरी