घड़ी चल रही टिक टिक टिक।
घड़ी चली टिक टिक टिक
घड़ी चली टिकटिकटिक!हमें कह रही धिक्!धिक्!धिक्!
मेरी बात अगर ना मनिहौ ! तो सांसें भी जइहैं बिक।
जल में चारो ओर प्लास्टिक माँटी में भी घोर प्लास्टिक
अमृत तो अब सपना है अब बचा कहाँ कुछ अपना है
अनपघट्टय रसायन छोड़ो पॉलीथिन ही जहर वास्तविक
घड़ी चली टिक टिक टिक हमें कह रही धिक धिक धिक
मध्य प्रदेश नगर भोपाला एक गैस त्रासदी हुई थी आला
गैस का नाम था ”मिक” ! इस ”मिक” के आगे कोई भी !
अब तक नहिं पाया टिक ! घड़ी चली टिक टिक टिक…..
हमें कह रही धिक् ! धिक !उद्योगों की शान प्लास्टिक
दुर्गुणों की खान प्लास्टिक किचेन से लेके शौचालय तक
घर-दफ्तर से विद्यालय तक सर्वाधिक उपयोग प्लास्टिक
घड़ी चली टिक टिक टिक हमें कह रही धिक धिक धिक
आओ पर्यावरण सुधारें ,बंद करें बेकार की झिक झिक
पर्यावरण जो बिगड़ गया तो कोई भी नहिं पाएगा टिक
धरा बचा लो! वृक्ष लगा लो!मंत्र बने अब यही स्वाभाविक
घड़ी चली टिक टिक टिक हमें कह रही धिक धिक धिक।
अब राजनीति की दाल न गलिहै रोटी भी ना पइहै सिक
आवश्यकताएं सीमित कर लो वृक्ष लगाकर धरा बचा लो।
धरा बचा लो वृक्ष लगा लो मंत्र बने अब यही स्वाभाविक।
घड़ी चली टिक टिक टिक हमें कह रही ………………..