घड़ियां इंतजार की …
क्यों लंबी होती हैं घड़ियां इंतजार की,
लय बढ़ने लगती है दिल-ऐ-बेकरार की।
हर एक लम्हा बड़ी मुश्किल से कटता है,
धीमी हो जाती जैसे चाल वक्त के रफ्तार की।
यह इंतजार कितना है भारी वो क्या जाने,
जिस पर न गुजरी हो कभी घड़ी इंतजार की।
उम्मीद/नाउम्मीदी के बीच झूलता यह इंसा,
नहीं समझ पाता रज़ा बेरहम तकदीर की।
अश्कों को तो समझा दे ये ” अनु” किसी तरह,
मगर क्या दवा करे अपने दिल-ए-बेकरार की।