घट जाने पर क्यों भारी है ?
पता नहीं क्या घट गया भीतर
कुछ खाली खालीपन सा है ।
सिमट गई शब्दों की दुनियां
मन में कुछ भारीपन सा है।
समझ न आता मन का कौतुक
घट जाने पर क्यों भारी है ?
अश्रु थके नैराश्य अविचलित
मन में अति पीड़ा भारी है ।
थम न रहा है मन का मनका
जानें क्यों इतना विचलन है ?
कुछ तो नया नहीं मेरे संग
ये सब तो जग का प्रचलन है।
जीवन ऐसी यात्रा जिसमें
नहीं सदा सुखधाम मिलेंगे ।
कभी प्रगति की छांव निरंतर
कभी आतप भरे विराम मिलेंगे ।
समय नहीं रुकता जब एक पल
क्यों अतीत फिर थाम खड़े है ?
बढ़ो समय संग जीवन कहता
आगे अभी प्रयाण बड़े है।