गज़ल_-वेद बदल जायगा‚तलवार टूट जायगी
वेद बदल जायगा‚तलवार टूट जायगी।
साहस के साथ दोस्तो पत्थर इसे दिखा।
धरती दरिद्रता नहीं सम्पन्नता का नाम।
आकाश को पानी के लिए आँखे जरा दिखा।
मजहब के सच को तार–तार कर रहे हैं जो।
मंत्रों के सच की उसे व्याख्या जरा सिखा।
रोके न आदमी के रूकेगा वन का पलायन।
भाग में पतन की कथा खुद ही है लिखा।
जंगल सिमट रहा है तो सागर बढ़ेगा ही।
मानव सभ्यता नष्ट होने अब बाँध ले शिखा।
पुस्तक से गायब हो रहा है शब्द‚वाक्य‚अर्थ।
आस्था‚श्रद्धा‚विश्वास व जीवन–परक शिक्षा।
आओ कि ह्रास होते युग को हेॐ रोक लें यहीं।
अथवा विद्रूप होगा कितना चेहरा ये इसे दिखा।
छेड़ना ही चाहिए अब यहाँ जंग जटिल जवान।
वक्त जीतने का है‚ छुद्र पीठ मत दिखा।
—————————————————————–