गज़ल
यहाँ मुस्कुराना जरूरी बहुत है
हक़ीक़त छुपाना जरूरी बहुत है,
अगर ख़्वाब संजीदा होने लगें तो
उन्हें गुदगुदाना जरूरी बहुत है,
जो रिश्तों की बगिया को है सींचना तो
मुहब्बत जताना जरूरी बहुत है,
भले इश्क़ है एक भारी-सा पत्थर
ये पत्थर उठाना जरूरी बहुत है,
सियासत के चेहरे से इंसानियत के
मुखौटे हटाना जरूरी बहुत है,
नए दौर की इस नई दास्ताँ में
पुराना ज़माना जरूरी बहुत है,
चलो फूँक डालें सभी नफरतों कों
ये कचरा जलाना जरूरी बहुत है,