गज़ल
बन्द तालों से मेरे दिल को छुड़ाकर ले गया
चन्द लम्हो में मुझे , मुझ से चुराकर ले गया
जिस्ममें दिल बनके मेरे अब धड़कने था लगा
चैन दिल का , नींद आँखों से उड़ाकर ले गया
बेरुखी थी या मुहब्बत ये समझ पाये न हम
आँसुओ को आँख में अपनी बसाकर ले गया
कौन आता है किसी के गम मिटाने को भला
सारे गम सीने पे अपने वो सजाकर ले गया
चढ़ गया है वो नशा उन के मुहब्बत का हमे
मयकदा आँखों को मेरी वो दिखाकर ले गया
दर्दअब आँखों से मेरी अश्क बनकर बह रहा
एक कतरा खूँन का मुझ पर गिराकर ले गया
( लक्ष्मण दावानी ✍ )
26/8/2017