गज़ल
परदा दरीचों से हमने ही हटाया नहीं था
ऐसा नहीं कि सूरज ने जगाया नहीं था
चाँद की तलाश रही तीरगी से लड़ने को
क्या फ़लक पर सितारा आया नहीं था
ताकते रहे पिता सूखती हसरतें, चल बसे
आसमां पर कोई बादल छाया नहीं था
वतनपरस्ती में बुत बन गए थे सब अश्क़
कैसे कहते कि माँ ने बेटा गँवाया नहीं था
हर दुकान पर यहाँ फ़रेब सजा रखा है
सदाक़त का बाजार तुमने बताया नहीं था
वो तो आँखें बोल रहीं थी हाल दिल का
जुबां से उसने हमें कभी जताया नहीं था
अर्ज़ियाँ सब खारिज कर दी मुफ़लिसी ने
लिहाज़ा ख़्वाब आँखों ने सजाया नहीं था
Rashmi Saxena