गज़ल
घना तिमिर है रस्ते भी अन्जाने हैं
हर दिन हमको दीप नये जलाने हैं
पढ़ सकते हो पढ़कर देखो
बूढ़ी आँखों में कितने अफ़साने हैं
घर में आग लगाकर हमने देखी
अपने कितने और कितने बेगाने हैं
छत पर धूप दालानों में आँधी रखी
अभी तो मौसम और भी आजमाने हैं
ढूँढ़ रहे हो ग़ैरों में तुम क़ातिल मेरा
खंजर हाँथों में जिनके, दोस्त पुराने हैं
गुज़र के जाना कभी उन गलियों से
जहाँ पक्के दिल ,कच्चे आशियानें हैं
उठा बोझ कंधों पर बस चलते जाते
किस्मत ने रख छोड़े जहाँ ठिकाने हैं
Rashmi Saxena.