गज़ल
सुरक्षित है घर फिर भी ताले लगे हैं।
क्यों रक्षित की चिन्ता बढ़ाने लगे हैं।
मची लूट बाजार में ऐॐ सियासत
खाद्यान्न छीनने अब निवाले लगे हैं।
कहीं सड़ रहा है कोई मर रहा है
कई मरने की तैयारी करने लगे हैं।
सुरक्षित घरों से निकल मेरे आका
किस्मत की पोथी अब सताने लगे हैं।
सिलसिला मौत का खेत–खलिहान में
अब अपना सब जौहर दिखाने लगे हैं।
प््राजा हूँ तुम्हें सौंप डाला सियासत
उठो सत्य हेतु दुःख सताने लगे हैं।
बहस करते तूने बितायी है सदियाँ
बहस के विषय विष चढ़ाने लगे हैं।
प्रभु के दिये संसाधनों को गिनो तुम
हम तक तो लाओ जी जलाने लगे हैं।
सुव्यस्थित नहीं क्यों होता है सब कुछ
भूख‚दर्द‚त्राास‚पीड़ा रूलाने लगे हैं।
अराजक नहीं राज होने दो राजा
क्रांतिवाले पुनः गीत गाने लगे हैं।