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6 Nov 2020 · 1 min read

गज़ल

मंजिलों को खटकता हूँ
दर-ब-दर जो भटकता हूँ ।

हैसियत और हसरत के
दरमियां ही लटकता हूँ ।

सिर्फ टेबल बदलता है
फाइलों सा अटकता हूँ ।

रोज़ जीना जहर पीना
खूं के. आँसू गटकता हूँ ।

ले खुदा आ. गया दर पे
मैं भी अब सर पटकता हूँ ।

-अजय प्रसाद

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